माँ--एक सुन्दर शब्द, एक सम्पूर्ण ग्रन्थ


माँ -
एक सुन्दर शब्द, एक सम्पूर्ण ग्रन्थ
जिसकी महिमा है अनंत,
कोई चाह कर भी इसकी महिमा पूरी कह न पाए,
जिसकी व्याख्या करना है अत्यंत दुर्गम।
यह वह शब्द है जिसे जितना जानो उतना है कम।
इसमें छुपे है सारी खुशी व सारे गम,
एक छोटा सा शिशु, जो कुछ भी कह न पाए
उसके अधरों पर सजी मुस्कान है यह:
एक वयस्क, जो अपने दिल की कसक किसी से भी साझा करने में घबराए
उन सभी कही अनकही पीड़ाओं का अंत है यह,
और दोनों के ही दुःखों से निवृत्ति का स्थान है यह।
दोनों के बिना कहे ही उनके दुःखों का समाधान है यह।
बालक के जीवन में सबसे उच्च स्थान पर है यह।
खुद पीड़ा उठा कर , माँ बच्चे को दुनिया में लाए
दुनिया में आगमन के पश्चात खूब लाड़ लड़ाए।
माँ जैसा कोई और न दूजा, इनसे ऊपर न जग में कोई पूजा।
माँ ही मिटाए जीवन का अँधियारा,
बिन कहे जो समस्या समझ जाये , पल भर में उपाय सुझाये।
सीने सें लग कर जिसके हम सारे गम भूल जाये।
माँ हर बच्चे की जान होती है,
पर माँ की जान तो उसके बच्चों  में ही होती है।
माँ जैसा दुलार, माँ का प्यार
माँ का समझाना, माँ का रूठना-मनाना
जिसने इन सबका मोल न जाना, उसका जीवन बेगाना!
माँ-माँ करते बच्चे बड़े हो जाँए, बड़े होकर वो इश्क़ लड़ायें!
पर क्या कभी वो ‘आई लव यू’ अपनी माँ से कभी कह पाए?
माँ का प्यार क्या वो कभी समझ पाए?
माँ का पर्याय है- त्याग,
तपस्या,
बाकि केवल बस एक मिथ्या।
माँ का निश्छल प्रेम जो पा ले, वो धन्य हो जाए।
प्रेम की मूरत है माँ:
माँ जैसे एक मिट्टी का घड़ा, जिसमें निहित है असीम शीतलता।
माँ का स्वरुप जैसे एक दीया, खुद जलकर जो अँधेरा मिटाये,
माँ ही तो दुनिया को जगमग बनाये।
माँ की जितनी व्याख्या करूँ, उतनी ही उसे कम मैं पाऊँ!  
माँ, मेरी प्यारी माँ
आपके चरणों में मैं शीश नवाऊँ।
आजतक की है मैंने गलतियाँ अनेक,
आपको कभी भी अगर पहुंचायी हो कोई ठेस,
तो उन सबके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ,
आपसे क्षमा की याचना करती हूँ।
आपकी सेवा का वचन मैं देती हूँ।
जीवन में जो बालक रहे माँ का कृतज्ञ सदा,
समझे वह भी माँ की हर दुविधा,
करे वह माँ से प्यार अथाह-
बिन प्यार की कोई सीमा जान,
करे माँ पर अपनी जान क़ुरबान,
तन-मन-धन से जो कोई माँ-पिता को पूजे,
जीवन की डगर पर वह कभी न झूझे।
माँ की महिमा अपरम्पार,
माँ को मेरा प्रणाम बारम्बार!


पूरी कविता पढ़कर माँ से आप क्या समझे ?
यह सिर्फ हमारी जन्म देने वाली माँ तक ही सीमित नहीं है,
ये समस्त प्रकृति हमारी माँ है;
इन्हीं से संसार है,
इन्हीं से जीवन उपजता है,
और अपनी यात्रा पूर्ण कर इसमें ही समा जाता है।
तो क्यों न जीवन की इस यात्रा को मधुमय बनाया जाए!
सुगन्धित पुष्प की भाँती क्यों न हम महके?
क्यों न हम सभी को खुद के प्रतिरूप समान देखें?
और समस्त ब्रह्मांड को ख़ुशी से चहकने का मौका दें!
जब हम महकेंगे, सबका ख्याल रखेंगे
तो ये समस्त ब्रह्माण्ड मधुर नाद करेगा
और सबका जीवन मंगलमय स्वयं ही हो जाएगा!

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