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Showing posts from 2020

प्रेम

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प्रेम किसीको पाना नहीं, प्रेम खुदको किसीमें खो देना है। प्रेम में ये सोचना कि हमे क्या मिलेगा?  प्रेम की पवित्रता को कम कर देता है क्योंकि प्रेम तो बस अपना सब कुछ न्यौछावर करना है। प्रेम जीवन को एक नयी ऊर्जा प्रदान करता है।  इसलिए नहीं कि जिससे हम प्रेम करते हैं वो सदा हमारे साथ रहे और हमें प्रेम करे बल्कि इसलिए कि प्रेमी का होना ही है काफी,  उसके होने में ही सिमट जाती है दुनिया हमारी।  प्रेम साथ में रहना नहीं,  साथ में जीना सिखाता है।  प्रेम हमारे हृदय में वास करता है,  उसका दुनिया के बंधनों से कोई नाता नहीं।  दुनिया प्रेम को संग जीने में 100 प्रतिबंध लगा देती है।  पर प्रेम कोई प्रतिबंध नहीं जानता।  वो तो बस हो जाता है..  दिमाग चाहे लाख बहाने बनाए,  दिल तो बस किसीका हो जाता है।  प्रेम की महिमा का बखान दिल के ही बस में है,  दिमाग तो बस दुनिया के आडम्बरों में उलझकर रह जाता है!  जो दिमाग की सुनने में रहता है,  प्रेम अक्सर उससे दूर हो जाया करता है।  किसी के प्रेम में खो जाना आसान नहीं और एक बार खो गए तो लौटना मुमकिन नहीं।

मेरा दिल झुका जाए माँ-पापा की ही ओर जब-जब ये दुनिया मचाये शोर!

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लोगों को ऐसा कहते सुना है एक परिवार का सबसे ज़रूरी हिस्सा होती है नारी - या कहें माँ। हाँ, इसमें ज़रा भी संशय नहीं कि एक परिवार को जोड़ने का काम माँ ही करती हैं। वह ही हैं जो हर किसी की गो-टू पर्सन होती हैं जब भी जीवन में कोई घटना घटित हो जाती है, या परिवार के किसी दूसरे सदस्य से हमारी खिट-पिट हो जाती है। पर इन सबका अर्थ ये बिल्कुल नहीं है कि घर की सारी जिम्मेदारियाँ बस माँ की ही हैं! माँ के अंदर इतनी काबिलियत ज़रूर होती है कि वह अकेले ही सब कुछ संभाल लें पर एक बच्चे के जीवन में माता-पिता दोनों ही एक विशेष भूमिका निभाते हैं। मैं काफी खुश नसीब मानती हूँ खुदको कि मैंने माँ-पापा दोनों का साथ पाया है, दोनों के प्रेम को जीया है, दोनों को अपने हर फैसले में अपने साथ खड़ा पाया है। दोनों ही बराबर का रोल निभाते हैं, एक गाड़ी है, तो दूजा गाड़ी की मोटर। एक पौधा है, तो दूसरा उसको सींचने वाली धूप! माँ पर लिखना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल है पिता के बारे में लिख पाना क्योंकि माँ तो मन की बात बड़ी आसानी से कह दिया करती हैं पर पापा तो बस अपने मन में ही कहके रह जाया करते हैं! और ऐसा तो है ही क

Are you feeling lonely too?

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Sharing my reflection post watching this  video  on loneliness which left me shattered and in deep thoughts.   Am I not really lucky to be blessed with my loving parents, my caring siblings, and my trustworthy friends and family? These people add a lot of happiness and completeness to my life every single day and every single moment. Yet, I feel as though I am caged, or maybe why are relationships even important? Yaa, the privileged ones always take their privileges for granted. Isn't it?  The ones who get to study in the school and college of their choices never considered studies to be important.  The ones blessed with loving and caring parents are mostly found complaining that their parents are way too much, always back and behind them - eat well, sleep on time, take rest, etc The ones blessed to find the love of their life are often found complaining about the few bad things in their partners like obsession, extra caring, too possessive, doesn't do this and that, etc. On th

जब बंधन, बंधन न बनकर आज़ादी को संग जीने का सहारा बन जाए!

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क्यों- जब कोई हमसे ज़्यादा प्यार करता है,  कोई हम पे मरता है,  जो अपना हर पल हमारे साथ बाँटना चाहता है,  हर पल हमें अपनी आँखों के सामने देखना चाहता है,  तो हमें ऐसा लगता है कि  हाँ, हम भी तुमपे जान छिड़कते हैं,  हम भी तुम्हें उतना ही प्यार करते हैं,  हम भी तुम्हारी फिक्र करते हैं,  पर इन सबके चलते हम यह भी समझते हैं  कि कुछ क्षण तुम भी शांति से केवल अपने साथ बिताना चाहते हो।  कुछ पल तुम, सब भुलाकर बस शून्य हो जाना चाहते हो।  सिर्फ अपने साथ, अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनना चाहते हो।  हमारे अलावा जो तुम्हारे और भी करीबी रिश्ते हैं,  तुम उन्हें भी संवारना चाहते हो।  तुम उन्हें भी सहेजना चाहते हो।  तुम हमसे हो और हम तुमसे,  इसमें तनिक भी संदेह मात्र नहीं है।  परंतु हाँ, हम इसे भी सहज स्वीकार करते हैं  कि हमारे साथ-साथ तुम्हारे संसार में और भी रिश्ते हैं  जिन्हें तुम चाहते हो,  जिन्होंने हमारी अनुपस्थिति में तुम्हारा साथ दिया है।  अगर आज तुम यहाँ हमारे साथ इतने प्रेम से जीवन जी रहे हो,  तो शायद पीछे बहुत ही विकट परिस्थितियों में किसी ने तुम्हें कंधा, किसी ने अपना समय, किसी ने स्वयं खुद को  तुम्

जग सूना सूना लागे!

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ऐसा लगता है जीवन में लोग आते ही जाने के लिए हैं! कोई ठहरता ही नहीं है।  कोई ये समझता ही नहीं कि जाने से आसान है रुकना।  या समझते भी हैं तो शायद उनके बस में नहीं होता रुकना! पर आने जाने के इस सफ़र को ही तो ज़िंदगी कहते हैं, हाँ जिसे ठहरना होता है वो ठहरता है,  और जिसे जाना होता है वो जाता है।  परंतु ये सब कहना जितना सरल है, उतना ही मुश्किल है इसे जीवन में उतारना! जब ये आने-जाने का सफर यूँही निरंतर चलता रहता है,  अब किसी को दिल के अंदर आने ही नहीं देंगे, ऐसा तो मन करता है,  पर कहाँ हमारे दिल और जीवन पर हमारा ये बस चलता है!  दिल, जैसे एक सुन्दर उपवन है -  जहाँ जो भी प्रेम लिए अंदर आया,  सदा सदा के लिए वहीं रह गया!  न आने पर ज़ोर,  न जाने पर ज़ोर,  पर इन सबके बीच में बेचारा दिल ही करत है शोर!  हमेशा दौड़े चला जाए प्रेम की ओर!  जब कुछ हाथ में न हो,  और बस तलब हो  कि सुनले वो जाने वाला दिल की आवाज़,  लगा ले गले,  और कह दे रखकर कांधे पर हाथ  कि, '' मैं हूँ हमेशा तेरे साथ!''  पर ये बात बस दिल की दिल से ही होती है  या ज़्यादा से ज़्यादा डायरी में हमारे और कलम के मध्य दर्ज होकर ह

TRUST-- An Indispensable Quality to Survive

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Whenever you look back and think about your life journey, there is one thing to which you are visibly or invisibly immensely grateful, is your ability to trust. There is a lot of reading and discussion about the distrust factor which is growing day by day in the society we live in, or we are planning to be with, but what is crucial is to understand how the factor of trust plays a role in our being-ness. By being a human we all are capable of trusting “strangers” innately; right from the lady who gives birth to a child but the child doesn’t know anything about her, to die in someone’s hand with the hope of getting buried appropriately. You know what- in this world, at some, or the other point of life, we act like the person we come across and do the same shit with others. Not with the same person, but with others. Everyone in the universe is ‘You’  and ‘Me’, just the roles keep changing with time. Even we are wrong at times, it’s just that we don't realise at that time. Thus we need

पत्थर का जवाब फूल से दें

"पत्थर का जवाब पत्थर से दिया तो क्या महान काम किया! "  मैंने यह पढ़ा था एक जगह कि इंसान वैसा ही बन जाता है जैसा उस के आस पास का वातावरण होता है। हमारे विचार इसबात पर काफी निर्भर करते हैं कि हमें प्रभावित करने वाले लोग कौन है। जीवन में सर्वाधिक विकास बचपन में होता है और उस समय अधिकतर लोग अपने माता-पिता के साथ, अपने सगे संबंधियों के साथ ही होते हैं अर्थात् हम वैसे ही बन जाते हैं जैसे हमारे आसपास के लोग होते हैं। हमारा अंदरुनी विकास उसी दिशा में होता है जहां हमारे सवालों को अक्सर मोड़ दिया जाता है इन करीबी लोगों द्वारा या जो भी घटित होता है हमारे समक्ष। हर इंसान अपने अनुभवों के अनुसार अपनी एक दुनिया बनाता है, उसके उसूल बनाता है।  जब हम बहुत आहत होते हैं, नाराज़ होते हैं,पीड़ित होते हैं, किसी बात से या किसी इंसान के व्यवहार से हमारा हृदय अंदर तक दुखा होता है,हमें बार-बार असफलता का मुंह देखना पड़ा होता है , उस समय हमारा दिल और दिमाग दोनों ही बहुत नाज़ुक स्थिति में होते हैं जिन्हें कोई भी आकार,कोई भी दिशा बहुत ही आसानी से दी जा सकती है। अगर कोई गुस्सा है,आहत है और वह ऐसे इंसान के स