और तुम कहते हो, मिलते नहीं हो

मौसम बदले, महीने बीते, दिन ढला और वो शाम आगयी जब हमारी मुलाकात की तिथि आई !
ईद का चांद ज़मीन पर उतर आया और एक अरसे का इंतज़ार,
गुस्सा, नाराज़गी, अकेलापन कुछ ही क्षणों में प्रेम के खुशनुमा पलों में यू तब्दील हो गए..
मानो कभी अंधेरा छाया ही न था।
कभी कोई आस, कोई प्यास थी ही नहीं।
था तो केवल वह प्रेम जो अपने होने के कारण को धन्यवाद देने को उत्सुक था,
पर वक़्त की व्यस्तता के चलते वह अपने ठिकाने पर पहुंचने में कामयाब नहीं हो पा रहा था।
पर ज्यों ही उसे हरी झंडी दिखी,
उसकी गाड़ी यू पटरी पर दौड़ती चली गयी अपनी मंज़िल की ओर
तब तक...
जब तक उसको, उसने ज़ोर से गले लगा कर अपने प्रेम का इज़हार नहीं कर दिया!
कृष्ण सही ही कहते हैं, "कुछ रिश्ते आज़ाद करते हैं"...
ये दो पल का मिलन, महीनों की जुदाई को ठीक वैसे ही पूर्णता प्रदान करता है,
जैसे शिव को शक्ति।

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