एक आरज़ू...

Oh I so longed for rain in this arid region of Karnataka.. Today when sitting inside my room I heard the wind roaring.. At 1. 15 am in the night when I don't even open the door as it opens towards the road and I am recommended to keep it shut.. I opened the door, went out, felt the breeze and allowed the light rain showers to touch me , heal me, love me, caress me..

मेरा मन डोले , मेरा तन डोले..
मेरे थिरकते कदम
मेरा भीगा बदन
ये चांदनी रात,
ये खुशियों की सौगात
ने बिछायी ऐसी बिसात
की नींद को रखकर परे
बस बहने लगी कविताएँ हृदय में मेरे...
अपने दोस्त की वो पंक्तियाँ की 'हम कहा लिखते है कविताएँ, वो तो बस हमसे गुज़रकर चली जाया करती हैं' हमे एक बार फिर से पूर्णतया उचित प्रतीत हुई!
तो हमने बस उन गुज़रती कविताओं को कुछ कैद करने की कोशिश की और वो कुछ ऐसी नज़र आई..

"कान्हा कहते हैं कि बांसुरी कोई ख्वाइश करे
और वो पूरी न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता! "
एक ख्वाइश की थी मैंने भी
बिजली से गरजने की,
 मेघा से बरसने की,
 प्रार्थना की थी मैंने
ताकि सालों से प्यासी बंजर ज़मीन की प्यास कुछ बुझे, मुरझाएं पेड़ों को थोड़ी जान मिले
पानी की एक बूंद को तरसते किसानों को थोड़ी राहत मिले!
जब इसी आशा में किसान भाई अपना खेत सजाता है, कि जब मेघा बरसेंगे और बारिश आएगी,
तो उसके स्वागत में कोई कमी न रह जाए..
इसी कोशिश में विरान पड़े गर्मी से तपते खेतों में
आशा की वो किरण को सीचते देखा है अपने खून पसीने से मैंने उन्हें।
वो देख-देख खाली पड़े कुएं और तालाब -
सदा एक ही दुआ में हाथ उठे हैं मेरे
ऐ मालिक, ऐ खुदा, थोड़ी महर कर,
खुशियों की एक फुहार ज़रा इधर भी छोड़कर,
महका दे ये सूने आंगन गीली मिट्टी की सुगन्ध से प्रभु यही है आरज़ू...

आज जब बिजली कड़की,
बादल बरसे
मेरे दिल ने बस यही दौहराया,
सच्चे दिल से जो भी मांगो, मिलता है हमेशा!
"ढूंढोगे तो मिलेगा" का सिद्धांत आज मेरे जीवन में फिर एक बार आज जीवंत हुआ!
आज मेरा तन और मेरा मन प्रकृति का शुक्रिया कहते न खुदको थकता पाए,
बस यही वो गुनगुनाए..  
बरसो से मेघा बरसो
बरसो रे मेघा-मेघा बरसो रे, मेघा बरसो
मीठा है कोसा है, बारिश का बोसा है 
जल-थल-चल-चल
चल-चल बहता चल..
काली-काली रातें,
काली रातों में ये बदरवा बरस जायेगा..
गीली-गीली माटी,
गीली माटी के चल घरौंदे बनायेंगे रे
हरी भरी अम्बी, अम्बी की डाली
मिल के झूले झुलाएंगे रे
धन बैजू गजनी,
हल जोते सबने बैलों की घंटी बजी,
और ताल लगे भरने
रे तैर के चली, मैं तो पार चली
पार वाले पर ले किनारे चली रे
मेघा... नन्ना रे..

Comments

Popular posts from this blog

जग सूना सूना लागे!

TRUST-- An Indispensable Quality to Survive

प्रेम