छुट्टी लेने में कोई हर्ज़ नहीं, इससे बहतर कभी कभार कोई मर्ज़ नहीं!
इतने ढेर सवाल मन में,
इतनी ढेर कार्यों की लड़ी लगी पड़ी है,
पूरा दिन कार्य करते हुए भी केवल इसलिए चैन नहीं,
की कही कार्य करने में कोई कमी तो नहीं?
अरे चाँद पर पहुंचना है,
अभी रुकना सही नहीं।
कहते तो सबसे हैं
चुना यह कार्य क्योंकि इसमें ही सबसे अधिक संतुष्टि है,
हमारे सपनों की पुष्टि है।
रात्रि में चैन से सोने देने की शक्ति है
पर कही कार्य करते करते,
जब कभी ख्याल आ जाता है ये
कि क्या जितना कार्य कर रहे हैं,
वो पर्याप्त है कुछ बदलाव लाने के लिए?
क्या परिवर्तन हेतु हम सही राह पर हैं?
क्या हम प्रकृति की सेवा हेतु पूर्णतया समर्पित हैं?
प्रकृति में, जीवन में, संतुलन लाने के लिए हम क्या सही मायनों में अपना योगदान दे रहे हैं?
बस इन्ही सभी सवालों के चलते,
पूरे दिन किए गए कार्य से मिली प्रसन्नता
रात्रि में और 2 पल के विश्राम के समय में हृदय में उठे इन सवालों से शीन हो जाया करती है।
फिर हम असमंजस में पड़ जाया करते हैं
और खोजते हैं
उन शांत हवाओं को,
उन बाहों को
जो हमारे हृदय में उठी इस अस्थिरता को थोड़ी स्थिरता प्रदान कर सके
और सोचते हैं
की क्या ज़रूरी है कुछ परिवर्तन लाने के लिए 24 घंटे ही प्रयत्नशील रहना?
क्यों एक पल ठहर कर नहीं खुदको शाबाशी दे सकते हैं हम?
क्या बुरा है अगर कल की सफलता या हार से कुछ सीख कर थोड़ा चिंतन कर लिया जाए,
या काम से थोड़ी छुट्टी लेली जाए!
ज़रूरी नहीं हर कार्य कुछ परिणाम दे ही सही हमे,
खुदको प्रोसेस में ढाल कर,
भी काफी कुछ सीखा और करा जा सकता है।
और यदि कुछ करना ही है,
तो उसे न करने का तो कोई विकल्प ही नहीं है।
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