वो थीं...

मैं बहुत ही अजीब सी स्थिति में खुदको पा रही हूँ,
कभी एकदम शांत
कभी अशांत
कभी रोने का मन कर रहा है पर अन्दर से इतनी शांति लग रही है कि रोना नहीं आ रहा,
कभी लग रहा है वो यही हैं साथ,
कही नहीं गयी
कभी लग रहा है, मैं शायद उन्हें आज आखरी बार हूँ देख रही,
उनके बच्चों को सोच कर सबसे ज़्यादा मैं खुदको दुखी पा रही हूँ,
ईश्वर उन्हें शक्ति दे, यही मना रही हूँ
नहीं रुकती दुनिया किसीके जाने से, यह भली भांति जानती हूँ
पर वक्त मानो थम सा गया है, ऐसी स्थिति में खुदको पा रही हूँ..
बैठे बैठे जब अजीब सी आवाज़े कानों में पड़ी
तो मानो दिल सहम सा गया..
धड़कनें तेज़ हो गयी
और मैं एकदम कही ठहर सी गयी
सुध बुध का कोई पता नहीं..
आधी चीज़ें मैं जानती हूँ सिर्फ़ मेरे मन में हैं,
सिर्फ काल्पनिक हैं,
पर खुदको बाहर नहीं उससे पा रही हूँ..
ठीक हो जाऊंगी थोड़े समय में विश्वास है,
पर उनकी यादें करेंगी परेशान अब क्योंकि उन्हें हमेशा के लिए खो दिया है...
जब मैंने पूछा कि यही समय हुआ ऐसा,
की उनकी तबीयत हुई खराब अचानक से,
और तोड़ दिया उन्होनें दम,
क्यों इन्हीं 10 दिनों में घटित हुई ऐसी घटनाएं,
तो ख्याल आया,
कि अभी उनसे आखरी मुलाकात की तसल्ली तो है,
शायद अगर बंगलुरु में यह खबर मिली होती,
तो अपने टुकड़े जोड़ने के लिए और दुख बांटने के लिए शायद ये कंधे नहीं होते
और उनके आखरी समय में उनके इतने करीब होना
बिना किसी प्लानिंग के,
शायद हमारे इस रिश्ते की पवित्रता का ही प्रतीक है..
की प्रकृति का चक्कर कुछ ऐसा घुमा
कि मेरा यहाँ आना कुछ ऐसे समय में हुआ,
जब मैंने उनके साथ 2 दिन सुख के बिताए,
एक दिन उनसे वो आखरी शब्द मैं साझा कर पायी,
उन्हें वो एक बूंद पानी की जो उनकी इच्छा पर मैंने उन्हें उस दिन पिलायी थी आज मुझे काफ़ी ताकत देती है,
और शायद आज उनके इतने करीब होकर, उनके धरती पर ये आखरी सफर में उनके साथ रह पाऊँगी.. 
मैं अपनी सेवा से शायद कुछ शुक्रिया उनका अदा कर सकूंगी..

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